जब भी पूछा है ज़िन्दगी कैसी कटती जा रही है
दिन के आग़ाज़ से,शाम के ढलने तक
बस तलाश सी रूह में पलती जा रही है
तलाश कभी ख़िताबों की,नेमतों के हिसाबों की
ख़्वाहिशों के बही खाते और उधेड़बुन जज़्बातों की
जब देखू मुड़ के वो रेत सी फ़िसलती जा रही है
कभी रखता हूँ हिसाब ज़माने की रिवायतों का
कभी यूँही अधूरी ख़्वाहिशों की शिकायत करता हूँ
कुछ दिन निकल जाते हैं उम्मीदों में…इंतज़ार में
और कुछ खामखां ही नाराज़गी में बर्बाद करता हूँ
अफ़सोस होता है वो दबे पैर निकलती जा रही है
कभी सोचता हूँ जान लूँ मैं राज सारा
क्या खेल है सारा कभी सख़्त कभी दिलचस्प है
फिर खोजता हूँ जवाब किताबों में…तक़रीरों में
वो हँसती है मुझ पर ताना कसती नज़र आ रही है
थोड़ा जी लो तो शायद समझ आ जाए
वो जो अबतक सवाल सी कटती जा रही है…
Image Source- Google
Uff..Ye Zindagi 🙂 Very well written…Loved it!!
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Thank u😊
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Khoobsurat 😊
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Shukriya😊😊
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,😊🌼👌
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Very beautiful and very deep. Absolutely LOVED these words. Thank you! 🙂
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Bahut khub likha hai👐😇
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Thank u very much🌺
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Lovely
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Thanks a lot💐
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My pleasure always 🌻
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Nice post
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खूबसूरत रचना।👌👌
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Dhanyawad🙏
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